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सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति में करीब 145 करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ है। देश के 34 राज्यों के 100 जिलों में की गई जांच में कई राज्यों में फर्जी लाभार्थी, कागजी संस्थान और छद्म नामों से बैंक खाते सामने आए हैं। 1,572 संस्थानों में से 830 यानी 53 फीसदी सिर्फ कागजों पर चलते पाए गए। महज पांच साल में इन संस्थानों ने 144.83 करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम दिया। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने इस खुलासे के बाद घोटाले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है।
सीबीआई को भेजे पत्र के मुताबिक, यह फर्जीवाड़ा सिर्फ वित्तीय लाभ पाने का मामला नहीं है, बल्कि छात्रवृत्ति के दुरुपयोग के चलते इसमें सुरक्षा का खतरा भी है। मंत्रालय के मुताबिक, फर्जी बैंक खाते बनाकर उन विद्यार्थियों के नाम पर छात्रवृत्ति ली गई, जिनका अस्तित्व ही नहीं था। इतना ही नहीं, इन फर्जी नामों के केवाईसी और फर्जी हॉस्टल के बदले में भी पैसे लिए गए। देश में करीब 1.80 लाख अल्पसंख्यक संस्थान हैं। इनमें 1.75 लाख मदरसे हैं, जिनमें सिर्फ 27,000 मदरसे ही पंजीकृत हैं और छात्रवृत्ति पाने के पात्र हैं। योजना के तहत कक्षा एक से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति का लाभ मिलता है। यह योजना 2007-08 में चालू हुई थी। मंत्रालय का मानना है, यह घोटाला तब ही से चल रहा है। अब तक करीब 22,000 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। बीते चार साल से सालाना 2,239 करोड़ रुपये की छात्रवृत्तियां दी गईं।
नोडल अफसरों की भी जांच
सीबीआई जांच के दायरे में नोडल अफसर भी होंगे। पता लगाया जाएगा कि अधिकारियों ने इन संस्थानों का अनुमोदन कैसे कर दिया? फर्जी मामलों का सत्यापन कैसे हुआ? कितने राज्यों में वर्षों तक घोटाला जारी रहा? बैंकों में लाभार्थियों के फर्जी खाते कैसे खुले? फर्जी आधार कार्ड व केवाईसी की जांच भी चल रही है।
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